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अब कैसे होई प्रधानी

अजेय
अजेय
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इस बार पंचायत चुनाव में अंगूठाटेकों  की दावेदारी खारिज होने सम्‍बन्‍धी खबर को लेकर गांव-गांव में चर्चा शुरू हो गई है। यूपी में सरकार का यह फैसला लागू हो जाने से उन लागों को करारा झटका लगेगा जो इस बार फिर  पंच और प्रधान बनने का सपना संजोये हैं। वहीं  इससे गांवों में महिला उम्‍मीदवारों को ढू़ढ़ने में खासी मशक्‍कत करनी होगी। एक अनुमान के मुताबिक जिलों में 25 से 30 प्रतिश्‍ात तक ग्राम पंचायत प्रतिनिधि अंगूठाटेक हैं ऐसे में दुबारा उनके चुनाव लड़ने का रास्‍ता बंद होने के आसार हैं। बिना पढ़े प्रधानी कर रही रामदुलारी हो या रुख्‍साना इनके लिए चुनाव लड़ना दिवास्‍वप्‍न सरीखा होगा। अपने भविष्‍य की चिंता से परेशान रामदुलारी इस सोच में डूबी हैं कि अब प्रधानी कैसे होई। निरक्ष्रर पंचायत प्रतिनिधियों की कतार में केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि कई ऐसे पुरुष्‍ा भी हैं जिनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है। बिना-पढ़े लिखे पंचायत प्रतिनिधि या तो किसी का मोहरा बने हैं या फिर महज रबर स्‍टाम्‍प। इन हालातों में ग्रामपंचायतों का क्‍या हाल होगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं विकास कार्यों और अन्‍य योजनाओं में ऐसे पंचायत प्रतिनिधियों के खाते से कितना गड़बड़ घोटला हुआ इसका खुलासा तो इनके हटने के बाद होगा। दर असल सरकारी योजनाओं का क्रियान्‍वयन हो या गांव में शिक्षा की अलग जगाने का मामला जब जागरूक और पढे लिखे प्रधान या अन्‍य पंचायत प्रतिनिधि होंगे तभी तरक्‍क्‍ी का सपना साकार हो सकेगा। यह कहना अतिश्‍योक्ति न होगी कि पंचायतों में हाईस्‍कूल और इससे ऊपर के चुनावों के लिए स्‍नातक होना अनिवार्य कर दिया जाय।

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