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बरेली की सूरमई पहचान पिछले 13 दिनों से दंगों की आग में झुलस रही है। इस आग पर काबू पाने के लिए शासन स्तर पर लगातार तमात कवायदें ही जा रही हैं लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या वहां का लोकल प्रशासन बेहद कमजोर है या पब्लिक में उसके मंसूबों की गलत छवि घर कई है। पुराने अधिकारी बदल गये और जो नये पहुंचे उनके सामने इन दो अहम सवालों का जवाब ढूढ़ने की चुनौती है। नये अधिकारियों की ओर से लगातार कोशिशें चल रही हैं और शासन के अधिकारी आसमान के जरिये हालात की निगरानी कर रहे हैं। इसके बावजूद हिंसा की चिंगारी रह-रह कर भड़क रही है। इन हालातों में यह जरूरी हो गया है कि दंगे पर काबू करने के प्रयासों के साथ ही नागरिकों के दिलों को जीता जाय। इसके लिए दोनों पक्षों के मानिन्द लोगों के साथ बैठक कर उन्हें अमन और भाईचारा बढ़ाने के लिए आवास से अपील की जाय। हर किसी को इस बात का भान कराया जाय कि प्रशासन और शासन किसी के पक्ष में नहीं बल्कि निष्पक्ष भावना से शांति बहाली के प्रयास में लगा है। इस कार्य में हिन्दू-मुस्लिम, सिख, इसाई सभी धर्र्मो के धर्मगुरुओं को भी आगे आने की जरूरत है। वहीं सभी राजनीतक दलों को एक मंच पर आकर अमन का पैगाम देना चाहिए न कि उन्माद को बढ़ाने के लिए हवा।
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