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यह यूपी की सियासत का चेहरा है

अजेय
अजेय
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सुना और पढ़ा बड़ा अजीब सा लगा डा लोहिया की जयंती  पर लखनऊ में जो भी कुछ हुआ वह शर्मनाक ही नहीं है बल्कि यूपी की सियासत का सच्‍चा मुखौटा है। इसमें एक चेहरा उनका है जो समाजवाद के झण्‍डाबरदार बने हैं दूसरा वे हैं जो सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की दुहाई देते हैं। दोनों के बीच सत्‍ता पर कब्‍जे को लेकर जारी जंग कोई छिपी नहीं है लेकिन मूर्ति को लेकर जोरआजमाइश यह हर किसी को हतप्रभ करने वाला है। सूबे की राजधानी लखनऊ में स्थित अस्‍पताल में डा लोहिया की प्रतिमा किसने रखवाई? किसने निर्माण कराया और कौन लोकार्पण करेगा ?सवाल इसका नहीं है। सवाल है कि आखिर उस महान सचमाजवादी चिंतक की मूर्ति का कोई भी लोकार्पण करता लेकिन इसे लेकर सत्‍तादल और उसके धुर विरोधी दल ने जो भी कुछ किया वह सचमुच दुखद है। समाजवाद के प्रणेता ने यह सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा  कि उनके न रहने पर उनकी प्रतिमा को लेकर इस तरह का बखेड़ा होगा। उनके सच्‍चे हमराह होने का दावा करने वाले प्रतिमा पर एक अदद माला चढ़ाने में तो कामयाब रहे, बाद में रही कसर सत्‍तादल ने पूरी कर दिया। आव देखा न ताव गेम विरोधी दल के हाथ जाने की आशंका में उसने प्रतिमा के पट खोल ही दिया। ऐसे में यदि डाक्‍टर साहब होते तो क्‍या  सोचते ? शायद यही सोचते कि आखिर उन्‍होंने जो संघर्ष किया वह किसके लिये था।

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