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वैसे तो हमारे देश में महानुभावों को विशेष श्रेणी में रखा जाता है। इनमं विधायक, सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तथा विभिन्न राजनीतिक दलों के बड़े नेता तक आते हैं। कोई वीआईपी तो किसी को वीवीआईपी का दर्जा प्राप्त है। उनके आगमन पर श्रेणीबद्व तरीके से सुरक्षा और अन्य इंतजाम भी किये जाते हैं लेकिन इन दिनों वीआईपी भक्तों की नई श्रेणी तेजी से बढ़ रही है। इन भक्तों को आवागमन पर मार्गदर्शक और सुरक्षा की व्यवस्था चाहिए। इतना ही नहीं दर्शन के लिए इन भक्तों कों कतार में खड़े होने की फुर्सत नहीं है ऐसे में इन्हें साधारण भक्तों की लाइन से इतर देवी-देवताओं के वीआईपी दर्शन कराने पड़ते हैं। इस दिखावे का प्रभाव केवल जनप्रतिनिधियों को ही नहीं है बल्कि लोकसेवक, न्यायिक अधिकारियों और रसूखदार लोगों पर भी है। इन हालातों में अयोध्या, मथुरा, काशी हो या फिर विंध्याचल अथवा शिर्डी का साईं मंदिर। सभी जगह आने वाले वीआईपी भक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही है। वीआईपी भक्तों की बढ़ती संख्या के कारण कुछ प्रमुख्ृा मंदिरों में बकायदा वीआईपी दर्शन के लिए शुल्क निर्धारित कर दिया गया है। इन हालातों को क्या कहा जाय। यह पैसऔर पद का प्रभाव है या फिर दर्शन-पूजन भी दिखावा बन चुका है। इन सवालों पर सोचने का वक्त है।
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