जेल में जंगलराज
कोई हाईप्रोफाइल तो कोई गैंगवार व सनसनीखेज वारदातों का आरोपी। धनबलियों और बाहुबलियों की भरमार। इसके बावजूद साल भर से यहां जेलर ही नहीं हैं। डिप्टी जेलर और बंदी रक्षकों का भी टोटा है। गत दिनों जेल विभाग में हुई प्रोन्नति के बाद यह उम्मीद जगी थी कि जेल में कर्मचारियों की कमी पूरी हो जाएगी पर ऐसा न हो सका। इस कारण एक-एक जेलकर्मी पर सौ से डेढ़ सौ बंदियों का भार है। यह समस्या केवल एक जेल की नहीं बल्कि यूपी की सभी जेलों में है उदाहरण के लिए फैजाबाद मण्डल कारागार की दशा पर गौर करें तो हकीकत खुद ब खुद सामने आ जाती है। मण्डल कारागार की क्षमता 745 बंदियों के रखने की है। इसकी तुलना में यहां लगभग 14 सौ बंदी/कैदी हैं। कारागार में ओवर क्राउड का सबसे अहम कारण यहां दो जिलों के बंदियों को रखा जाना है। अम्बेडकरनगर जिले में जेल न होने से वहां के भी बंदी यहां रखे जाते हैं। बंदियों को रखने के लिए 26 बैरकें हैं जिनकी व्यवस्था में लगभग 80 आरक्षी तैनात हैं। बैरकों में चार-चार घण्टे की ड्यूटी लगती है। हर बैरक में कम से कम दो बंदी रक्षकों का रहना जरूरी है। इसी तरह यहां छह उप कारापाल का पद सृजित है जिसमें से दो रिक्त हैं। जेलर की तैनाती यहां साल भर से नहीं हुई है। राजवीर सिंह का तबादला हो जाने के बाद से यह पद खाली है। कार्यवाहक रूप से यह दायित्व डिप्टी जेलर आनन्द शुक्ल को सौंपा गया है। ऐसे में जेल में तैनात अधिकारियों व कर्मचारियों की कुल संख्या सौ से भी कम है जबकि बंदियों की तादाद इससे बहुत ज्यादा है।
ये मानीय हैं सीखचों के पीछे मण्डल कारागार में बी क्लास के दस बंदी हैं। इनमें संत ज्ञानेश्र्वर हत्याकाण्ड के आरोपी ब्लाक प्रमुख यशभद्र सिंह मोनू, बहुचर्चित शशि हत्याकाण्ड के आरोपी बसपा विधायक आनन्दसेन, हत्या के मामले में सजायाफ्ता उरई के पूर्व विधायक जगदेव सिंह व उनके फाइली रामबाबू, मडि़याहू के पूर्व विधायक दूधनाथ पाल आदि शामिल हैं। इसके अलावा मुंबई के पवन राजे निम्बालकर हत्याकाण्ड में आरोपित ज्ञानेन्द्र उर्फ छोटे पाण्डेय समेत आदि कारागार में निरुद्ध हैं। जाहिर है कि कारागार प्रशासन पर किस हद तक दबाव है।
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