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करीब पांच साल पूर्व जब में वैष्णव देवी के दर्शन को जा रहा था तो जम्मू की सीमा में पहुंचते ही मुझे हालात बदले नजर आये। वहां के रेलवे स्टेशनों, सरकारी कार्यालयों व निर्माण स्थलों पर सेना के जवान मुश्तैद थे। जम्मू रेलवे स्टेशन पर मानो सेना की छावनी ही स्थापित थी। आवागमन से लेकर सुरक्षा तक की व्यवस्था उन्हीं के हाथों में थी। यह सिलसिला मंदिर तक दिखा। दूसरी बार गया तो उन स्थानों पर अर्द्वसैनिक बल की तैनाती दिखी। तीसरी बार गया तो अधिकांश स्थलों पर स्थानीय पुलिस का पहरा था इस कारण समूचा माहौल ही बदला दिखा। जो अनुशासन और सतर्कता सेना की तैनाती के दौरान था वह अब गायब हो चुका था। बीते साल अक्टूबर की बात है जब हम लोग चौथी बार माता के दर्शन को गये। हमा जिस बस में थे उसे कटरा के निकट पुलिस चेक पोस्ट पर रोककर चेक किया गया जबकि वहां से निजी गाडि़यां बेरोकटोक आवागमन कर रही थीं। बस कटरा पहुंची तो हमारी टीम में शामिल एक महिला का बैग चोरी हो गया जो पीछे बाक्स में रखा था। जब तक हम लोग कुछ समझ पाते तब तक चालक बस लेकर आगे निकल गया। बड़ी मुश्किल से वह मिला भी लेकिन क्षतिपूर्ति की भरपाई को तैयार नहीं हुआ। इस बारे में सूचना कटरा थाने पर दी गई तो वहां मौजूद निरीक्षक ने माना कि इन दिनों यूपी, बिहार के कुछ चोर आ गये हैं जो यहां घटनाएं कर रहे हैं। उसने रिपोर्ट दर्ज करन कार्रवाई के बजाय दूसरी बातों से ही सांत्वना देने का सिलसिला जारी रखा। कहने का मतलब कि लोकल पुलिस और सेना की तैनाती का यह फर्क जम्मू-कश्मीर जाने वाले हर किसी को नजर आ सकता है। कारण वहां घर के भेदिया लंका ढहाने में लगे हैं ऐसे में वहां कानून-व्यवस्था सुचारु रखने के लिए सेना ही विकल्प है। वहीं पत्थरबाजों व सीमा पार से आ रहे देशद्रोहियों को काबू में कर सकती है
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