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और बदल गया चाचा नेहरू का जन्‍मदिन

अजेय
अजेय
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पापा, पापा रुपये दे दो/ रुपये क्‍या होंगे बेटा, आज बाल दिवस है, चाचा नेहरू का जन्‍मदिन। अरे उनका जन्‍मदिन तो 14 नवंबर को मनता है। पर हमारी मैम ने बोला है कि चौदह तारीख को रविवार है, इसलिए आज ही बाल दिवस मनायेंगे। बाल दिवस के मौके पर हम लोग पार्क में पिकनिक मनाने जायेंगे और खेलेंगे, कूदेंगे। बेटा इसमें रुपये का क्‍या काम। पापा मैडम बोली हैं कि खाने-पीने की व्‍यवस्‍था खुद करनी है। सात साल की स्‍नेहा शहर के एक कान्‍वेंट स्‍कूल में कक्षा चार की छात्रा है। उसने शनिवार को अपने पिता डीवी सिंह से जब नेहरू जयंती पर आयोजित कार्यक्रम के बारे में बताया तो वह एक बारगी सन्‍न रह गये। उन्‍हें रुपये देने की चिंता नहीं थी बल्कि इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि अब महापुरुषों की जयंती की तिथि भी बदल दी जा रही है। उन्‍होंने अपनी इस चिंता के बारे में हमसे भी चर्चा किया। सिंह साहब बोले कि 13 नवंबर को बाल दिवस के उपलक्ष्‍य में आयोजन केवल एकमात्र विद्यालय में नहीं है बल्कि शहर के दर्जनों नामी-गिरामी स्‍कूलों में विभिन्‍न आयोजन किये गये। किसी ने गोष्‍ठी कर डाली तो कहीं प्रभात फेरियां निकालकर व टाफी बांटकर चाचा नेहरू की जयंती मना ली गयी। हैरत जयंती की तिथि परिवर्तन को लेकर नहीं है बल्कि शर्म इस बात को लेकर है कि देश के भविष्‍य को हम किस ओर ले जा रहे हैं। यदि हम अपनी नई पीढ़ी को इसी तरह से भटकाते रहे तो उनका भविष्‍य कितना उज्‍जवल होगा इसका आंकलन स्‍वयं किया जा सकता है। फिलहाल देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती के उपलक्ष्‍य में निजी स्‍कूलों व कतिपय अर्द्धसरकारी स्‍कूलों में मनमानी होती रही लेकिन प्रशासन व शिक्षा विभाग के अधिकारी तमाशा देखते रहे। सवाल उठता है कि यदि गणतंत्र दिवस या स्‍वतंत्रता दिवस रविवार को पड़ते हैं तो क्‍या शिक्षण संस्‍थानों व सरकारी कार्यालयों में आयोजन एक दिन पूर्व ही कर लिया जायेगा। यह सवाल बड़ा सोचनीय है पर सरकारी तंत्र को समझ में आये तब तो।

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