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दूसरा पहलू : यूपी में पुलिस सुधार

अजेय
अजेय
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काफी घेराबंदी के बीच लगता है कि अब यूपी में पुलिस

सुधार की सिफारिशें लागू कर दी जाएंगी। ऐसे में थानाध्‍यक्ष

से लेकर पुलिस अधीक्षक तक के अधिकारियों के चेहरे पर

मुस्‍कान दिखाई पड़ रही है। उनका मानना है कि अब एक बार

तैनाती हो जाने पर दो-तीन साल के लिए टेंशन फ्री हो जाएंगे

अधिकारियों की यह खुशी वाजिब भी है। कारण आये दिन बदलने

वाले तैनाती व स्‍थानांतरण के आदेश का खतरा उन पर नहीं रहेगा

लेकिन पुलिस के इस सुधार का दूसरा पहलू जनता पर भारी

पड़ने वाला है क्‍योंकि दो साल के लिए कुर्सी महफूज हो जाने

के बाद थाना या कोतवाली प्रभारी हों या फिर जिला के पुलिस

प्रमुख वे निरंकुश और तानाशाह हो जाएंगे। उनके कार्यों की आलोचचना

होने के बावजूद आसानी से हटाया नहीं जा सकेगा। लोकतांत्रिक

तरीकों और मीडिया का भी इन सरकारी मुलाजिमों पर असर नहीं

होगा। ऐसे में न्‍याय की सबके निचली कड़ी थाने से लेकर जिलों

तक पीडि़तों को आसानी से न्‍याय नहीं मिल सकेगा। इतना ही

नहीं तबादला और पोस्टिंग शासन स्‍तर से होने के कारण वे ही

दरोगा या आईपीएस मुख्‍य कतार में होंगे जिनकी पकड़ शासन व सत्‍ता में होगी।

इस कारण वह उन्‍हीं नेताओं के जेबी हो जाएंगे जिनके जरिये

कुर्सी मिलेगी। ऐसे में जिले व मंडल स्‍तर पर बैठे अधिकारियों

का भी कोई अंकुश मातहतों पर नहीं रह जाएगा। उनकी मनमानी

चरम पर होगी। ऐसे में पुलिस सुधारों को लागू करने से पहले

व्‍यवहारिक दृष्टि से कर लिया जाना चाहिए। यह ठीक है कि

रोज-रोज तैनाती व तबादला नहीं होना चाहिए। पर कौन सही

है कौन गलत है, इस बारे में निर्णय लेने का अधिकार जिले के ही

अधिकारियों को मिलना चाहिए। जिससे किसी गड़बड़ी व मनमानी पर

वह ही कार्रवाई कर सकें। वरना इन अधिकारियों की भूमिका

बिना दांत व नाखून वाले शेर की तरह हो जाएगी। जरूरत इस

बात की है कि पुलिस सुधार अवश्‍य लागू हो पर उसमें ज्‍यादा

जोर उनके कल्‍याण पर दिया जाना चाहिए। नतीजतन अध्रिकतम

बाहर घंटे डयूटी और कल्‍याण के लिए अन्‍य उपाय होने चाहिए

पर सबसे जरूरी है पब्लिक का हित जो किसी भी व्‍यवस्‍था में

सर्वोपरि है। यहां यह भी ध्‍यान देना जरूरी है कि पूर्व में जिला,

रेंज व जोन स्‍तर पर समीक्षा की व्‍यवस्‍था थी पर यह व्‍यवस्‍था

खत्‍म कर दी गई। इस कारण पुलिसकर्मियों के कार्यों की लगातार

समीक्षा की मजबूत कड़ी कमजोर हो गई।

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