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आखिर कैसे रुकेंगीं आतंकी घटनाएं

अजेय
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फैजाबाद, अयोध्या के अधिग्रहीत परिसर पर पांच साल पूर्व हुए फिदाइन हमले में वांछित अभियुक्त मुश्ताक अब तक पहेली बना है। जांच एजेंसियों की छानबीन में इस बात की पुष्टि हुई है कि हमले में जिन बमों व राइफलों को इस्तेमाल किया गया था उसे अलीगढ़ में रखवाने की व्यवस्था मुश्ताक ने ही की थी। वहीं राम सिंह नामक उस व्यक्ति के बारे में भी सुराग नहीं लगा जिसने अंबेडकरनगर में किराए पर कमरा लेकर आतंकियों को ठहराया था। वर्षो बाद में पुलिस अथवा खुफिया एजेंसियों की नाकामी के कारण अयोध्या की घटना से जुड़े कई राज उजागर नहीं हो सके। वाराणसी की घटना के बाद यह सवाल उठ रहे हैं कि कहीं उक्त मददगारों का इस्तेमाल आतंकी संगठनों द्वार फिर तो नहीं किया जा रहा है? पांच जुलाई 2005 को अधिग्रहीत परिसर पर आतंकी हमला किया गया था। हमले के दौरान आत्मघाती दस्ते के सभी आतंकियों को सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में मार गिराया था। घटना में शामिल आतंकियों के मददगारों तक पहुंचने में मृत आतंकियों के मोबाइल फोन से काफी मदद मिली। उसी के जरिए घटना की साजिश में शामिल जम्मू-कश्मीर से आसिफ इकबाल उर्फ फारुख, मोहम्मद नसीम, मोहम्मद अजीज, शकील अहमद व सहारनपुर जिले से डा. इरफान को गिरफ्तार किया गया। ये सभी अभियुक्त इन दिनों नैनी जेल में निरुद्ध हैं जहां उनके विरुद्ध सुनवाई हो रही है। पुलिस की छानबीन में अलीगढ़ निवासी मुश्ताक अभी वांछित है। इसके अलावा कोड नाम वाले पांच आतंकियों दाऊद, उमर, दनदल, अदनान व कारी का नाम प्रकाश में आया है। इनमें से तीन के मृत होने की बात पुलिस मान रही है जबकि मुश्ताक व अदनान वांछित हैं। पांच साल तक चली पुलिस की विवेचना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी। हालांकि पुलिस अधिकारियों का कहना है कि विवेचना जारी है। इसी तरह 23 नवंबर 2007 को कचहरी में हुए सीरियल ब्लास्ट की घटना में आमिर नामक उस युवक का नाम प्रकाश में आया था जिसके द्वारा घटना में इस्तेमाल साइकिल लिए जाने की पुष्टि हुई थी। पुलिस या खुफिया एजेंसियां अब तक उसके बारे में भी सुराग नहीं लगा सकीं। वाराणसी में हुए ब्लास्ट के बाद खुफिया एजेंसियां इस बात को लेकर चौकन्नी हैं कि कहीं पूर्व में घटनाओं में शामिल उक्त मददगारों का फिर तो इस्तेमाल नहीं हो रहा है।

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