- 55 Posts
- 275 Comments
इसे जीवों के प्रति अगाध प्रेम कहें या बुजुर्गो से मिली सीख। हकीकत जो भी हो पर ग्रामीण अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं। उनके गांव में हजारों की तादाद में चमगादड़ों का बसेरा है। इनके द्वारा फलों व फसलों को क्षति भी पहुंचाई जा रही है। इसके बाद भी ग्रामीण चमगादड़ों को न तो खुद मारते हैं और न ही शिकारियों को मारने की इजाजत देते हैं। कारण गांव के लोग सैंकड़ों वर्षो से इन्हें अपना पूर्वज मानते चले आ रहे हैं। जिला मुख्यालय से करीब 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ग्राम पंचायत पारा ब्रह्मानान पूरे शंकर शुक्ल। रायबरेली हाइवे के निकट स्थित इस गांव में आम, इमली, पाकड़, बरगद के पेड़ों व बांसकोठ पर बड़ी संख्या में चमगादडों का बसेरा है। दिन में यह पेड़ों से लटके रहते हैं। इनकी संख्या इतनी रहती है कि डाल तक नहीं दिखाई पड़ती। चमगादड़ों की मौजूदगी के कारण बच्चे जल्दी पेड़ों के पास नहीं जाते। कारण गांवों में यह कहा जाता है कि चमगादड़ सिर के बाल चट कर जाते हैं। वहीं पेड़ों पर लटके इन चमगादड़ों की आवाज से राहगीर भी डर जाते हैं। रात में चमगादड़ों का झुंड भोजन की तलाश में निकलता है। सुबह होने से पहले ही यह पुन: अपने ठौर पर आ जाते हैं। घरों के ऊपर से उड़ते रहने के कारण यह वहां पर मल-मूत्र त्यागते रहते हैं। इस कारण गंदगी बढ़ जाती है। गांव निवासी 68 वर्षीय गोपी शुक्ल बताते हैं कि यहां चमगादड़ सैंकड़ों वर्षो से रह रहे हैं। इनको मारने से जीव हत्या जैसा पाप लगेगा, क्योंकि हम लोग इन्हें पूर्वज मानते हैं। वहीं गांव का युवा वर्ग चमगादड़ों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताता है। सुरेश शुक्ल, संतोष कुमार, गिरजेश कुमार व शिवराम यादव का कहना है कि इनकी मौजूदगी के कारण आम, महुआ व अमरूद आदि फलों को क्षति पहुंच रही है। इसके बावजूद बड़े-बुजुर्गो के विरोध के कारण चमगादड़ों को मारा नहीं जा सकता है।
Read Comments