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एक ओर योग क्रिया के जरिए विश्व को निरोगी करने का दावा करने वाला योग गुरु बाबा रामदेव तो दूसरी ओर जनहित के जरिए एक नई क्रांति का जज्बा पैदा करने वाले जननायक अन्ना हजारे। दोनों ने एक ही मंजिल के लिए समानांतर रास्ते चुने। देश की यह हस्तियां भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कुछ भी कर गुजरने को आतुर। इसमें बाबा रामदेव पहल करने में आगे बढ़ चले। उन्होंने पहले देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी यात्राओं के जरिए जनसमर्थन हासिल करने की कोशिश की। इसके बाद सीधे सरकार से आरपार के संघर्ष का मन बना लिया। इसी मकसद से वह पहुंच गए दिल्ली के रामलीला मैदान जहां हजारों की भीड़ के बीच धरने पर बैठ गए। सरकार ने उनकी इस मुहिम का आंकलन कर पहले साम फिर दंड का रास्ता अख्तियार कर लिया। योग क्रियाओं में माहिर बाबा की इतनी बड़ी और पहली मुहिम थी जिसके लिए चौकस इंतजाम भी किए गए थे लेकिन उनकी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम सरकार के चाबुक के आगे ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकी। आधी रात को दिल्ली पुलिस ने जब अचानक हमला बोल दिया तो बाबा का साहस व धैर्य अडिग नहीं रह सका। मौके की नजाकत को भांपते हुए उन्होंने साधु का चोला छोड़ स्त्री का पोशाक पहनकर दबेपांव बच निकलने की युक्ति निकाल ली। उनका यह कदम हर किसी को अखरने वाला रहा। अपनी मुहिम का दुखद अंत देखकर बाबा ने दूसरे चरण के आंदोलन हरिद्वार में ही अनशन शुरू कर दिया। शायद उन्होंने सोचा रहा होगा कि उनके इस रुख से सरकार घुटने टेक देगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। नतीजतन योग की तमाम विद्याओं को जानते हुए भी बाबा की ऊर्जा पांचवें दिन ही जवाब दे गई। इस कारण उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए चिकित्सीय सेवाओं की मदद लेनी पड़ी। ऐसे में लगातार दूसरी बार बाबा का हठ बेकार गया। अब बारी दूसरी योगी अन्ना हजारे की थी जो अपने कर्म, सदचरित्र और त्याग के बूते भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन की मशाल लेकर आगे बढे। आगे-आगे अन्ना और उनके पीछे देश के कोने-कोने से लोग जुड़ते गए। अपनी मुहिम के आगाज के दौरान उन्हें जेल यात्रा भी करनी पड़ी लेकिन जन दबाव के कारण सरकार ज्यादा दिनों तक जेल की सीखचों के पीछे कैद नहीं रख सकी। इतना ही नहीं अन्ना तभी जेल से निकले जब उन्हें उनकी मंजिल की ओर आगे बढ़ने की रजामंदी सरकार को देनी पड़ी। इसके बाद उन्होंने नई क्रांति के लिए दिल्ली का वही रामलीला मैदान चुना जहां बाबा रामदेव का आंदोलन चंद दिनों में नेस्तानाबूद कर दिया गया था। एक दिन, दो दिन इसके बाद दिन ब दिन बीतते गए लेकिन सो रही सरकार की नींद टूटने से रही। आखिर में अन्ना की इस मुहिम की हवा देश की राजधानी से लेकर गांवों तक पहुंची तो हर ओर अन्ना, अन्ना ही नजर आने लगे। एक अन्ना सैंकड़ों, हजारों और लाखों नहीं बल्कि करोड़ों की तादाद में नजर आने लगे। एक तरफ इस जननायक का हठयोग और दूसरी ओर सरकार का अडि़यल रुख। ऐसे माहौल में बारह दिन गुजर गए। इस अवधि में अन्ना भूखे रहने के बावजूद शेर की तरह दहाड़ते रहे। उनकी दहाड़ का आलम यह रहा कि जन दबाव सरकार पर ही नहीं बल्कि विपक्षी राजनीतिक दलां पर पड़ता गया। इस कारण बारहवें दिन शाम को जनलोकपाल विधेयक पर सरकार को सहमति जतानी पड़ी। इसके बाद तेरहवें दिन अन्ना का अनशन टूटा। अब सवाल यह है कि योगी अन्ना हैं या बाबा रामदेव। इसका जवाब होगा अन्ना। कारण योगगुरु से वह हर मायने में आगे निकल गए। उनका अगला कदम देश हित में क्या होगा, लोग इसका इंतजार कर रहे हैं।
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