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सियासी संतों को राम-राम!

अजेय
अजेय
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जिस धर्मनगरी और उससे उपजे आंदोलन के जरिए कुछ राजनीतिक दलों का सितारा चमका, वहां के राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले संत-महंतों की भी सियासत के समर में खासी अनदेखी हो रही है। आंदोलन की तपिश कम होने के साथ ही राजनीति में उनका महत्व भी कम होता गया। अयोध्या के वशिष्ठ पीठाधीश्र्वर डॉ. राम विलास दास वेदांती भगवा खेमे के फायरब्रांड नेताओं में शुमार किए जाते हैं। रामलहर के दौरान वह पहली बार प्रतापगढ़ और दूसरी बार जौनपुर जिले की मछली शहर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। वर्तमान में राममंदिर आंदोलन व हिंदुत्व के मसलों को लेकर वह मुखर भी हैं। उनके शिष्य डॉ. राघवेश दास वेदांती भी राजनीति में सक्रिय हैं। प्रवचन और श्रीराम कथा के साथ ही वह विहिप व अन्य संगठनों के कार्यक्रमों में अहम भूमिका भी निभाते हैं। इस बार श्रावस्ती जिले की भिनगा सीट के कार्यकर्ताओं ने उनसे चुनाव लड़ने का आग्रह किया। वह तैयार भी थे लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया। वेदांती कहते हैं कि पार्टी चाहती तो वह चुनाव जरूर लड़ते। दर्शनभवन के महंत डॉ. विश्र्वनाथ दास शास्त्री प्रखर वक्ता होने के साथ ही मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते रहे। वह रामलहर में सुल्तानपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। वर्तमान में वह अयोध्या में ही हैं। पार्टीगत राजनीति में संतों को दरकिनार किए जाने के सवाल पर वह कहते हैं कि कहीं न कहीं उपेक्षा का भाव जरूर है। राजनीति दो तरह की होती है। पहली पद-प्रतिष्ठा के लिए और दूसरी सिद्धांतों के लिए। मौजूदा समय में सिद्धांतों की राजनीति करने वाले संत तटस्थ हैं। उन्होंने बाबू सिंह कुशवाहा जैसे लोगों को भाजपा में शामिल किए जाने पर नाखुशी जताई। इसके अलावा तिवारी मंदिर के महंत व कांग्रेस के पीसीसी सदस्य महंत गिरीशपति त्रिपाठी इस बार विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक थे। पुरजोर दावेदारी के बावजूद उन्हें टिकट नहीं मिला इसलिए चुनाव मैदान में नहीं उतर सके। उनका मानना है कि संतों का काम राजनीति करना नहीं है लेकिन जो इससे जुड़े हैं उनको महत्व प्रभाव में रहने के कारण मिलता है। कारण राजनीति हर वर्ग का उपयोग करती है। हनुमानगढ़ी के सरपंच रहे समाजवादी संत सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत भवनाथ दास, बैकुंठ मंडपम के महंत पुरुषोत्तमाचारी, विहिप के महानगर अध्यक्ष महंत बृजमोहन दास व पीस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव देव मोरारी बापू अलग-अलग संगठनों के अलावा राजनीति में महती भूमिका निभा रहे हैं। इन लोगों ने किसी पद के लिए टिकट की मांग नहीं की लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी को सहेजने का कार्य सकते हैं। राजनीतिक दल आगे इन्हें कितना महत्व देते हैं, यह वक्त बतायेगा।

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